म प्र सरकार के इस फैसले ने भू—माफिया के मंसूबों पर पानी फेरा
भोपाल। मुरैना जिले में कैलारस शुगर मिल की 26 हेक्टेयर जमीन को सरकार स्वयं विकसित करेगी,लेकिन इसका उपयोग सिर्फ रोजगार पैदा करने वाले कामों के लिए ही किया जा सकेगा। मंगलवार को संपन्न कैबिनेट बैठक में सहकारिता विभाग के इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिली।
मिल मजदूरों को मिलेंगे 55 करोड़ रुपए
बैठक में तय हुआ कि मुरैना की बंद शुगर मिल को आधुनिक मिल के रूप में विकसित किया जाए और यदि यह संभव नहीं होता तो मिल की जमीन को सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए आवंटित किया जाए। इससे जिले में रोजगार के नए अवसर पैदा हों। बैठक में मिल मजदूरों की बकाया 54.81 करोड़ रुपये की राशि अदा करने का भी निर्णय लिया गया। बताया जाता है कि विगत दिनों मुरैना प्रवास के दौरान सीएम डॉ मोहन यादव कैलारस शुगर मिल की देनदारी अदाकर यहां रोजगारपरक निवेश करवाने की घोषणा की थी। इसके चलते कैबिनेट बैठक में मिल से जुड़ा प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूर किया गया।
भू—माफिया के मंसूबों पर फिर पानी
सरकार के इस फैसले ने भू—माफिया के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। जो बंद मिल की जमीन खुर्द—बुर्द करने की उम्मीद लगाए था। इसके लिए करीब छह माह पहले एक बड़ा आंदोलन खड़ाकर भ्रम फैलाने की कोशिश भी हो चुकी है। साल के शुरुआत में हुए आंदोलन को यह कहते हुए धार देने की कोशिश हुई कि सरकार मिल की सहकारी जमीन को नीलाम करना चाहती है।
इस आदेश ने आग में घी का काम किया
किसानों व मिल मजदूरों के आंदोलन के दौरान ही जिला प्रशासन ने न्यायालय के एक आदेश पर मिल की करीब 4 बीघा जमीन की नीलामी की कार्यवाही शुरू करना चाहा। प्रशासन के इस आदेश ने आग में घी का काम किया।
कैलारस में सत्याग्रह आंदोलन के नाम पर करीब दस हजार से ज्यादा लोग जमा हुए और जंगी प्रदर्शन किया। सैकड़ों लोगों ने जेल भरो आंदोलन के तहत गिरफ्तारियां भी दी। प्रदर्शन की व्यापकता को देखते हुए जिला प्रशासन के हाथ—पैर फूल गए और नीलामी की कार्यवाही को रोकना पड़ा था। तब जिला कलेक्टर अंकित अस्थाना को आगे आकर स्थिति का खुलासा करना पड़ा।
कौड़ी के दाम मिली जमीन अब बेशकीमती
कैलारस शुगर मिल की स्थापना सहकारिता कानून के तहत साल 1971—72 में हुई थी। तब इसके लिए जुटाई गई जमीन की कीमत कुछ सौ रुपए प्रति एकड़ थी। जबकि वर्तमान में इसकी कीमत करोड़ों में है। प्रदेश की अन्य शुगर मिलों की तरह कैलारस शुगर मिल भी
कुप्रबंधन का शिकार हुई। अपनी उपज का समय पर भुगतान नहीं होने से गन्ना उत्पादक किसानों ने भी इससे दूरी बना ली।जैसे—तैसे साल 2009 तक मिल चालू रही। इसके बाद साल 2011 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया,लेकिन अदालती प्रकरणों के चलते मिल मजदूरों व किसानों की देनदारियां बकाया रही। मप्र न्यूज,मुरैना न्यूज