‘होमबाउंड’ के ऑस्कर चयन की खबर सुनकर भावुक हो गए थे ईशान
नीरज घेवान की फिल्म ‘होमबाउंड’ का ऑस्कर के लिए चयन होना हर किसी के लिए खुशी की बात है। इस खुशी से फिल्म के अभिनेता ईशान खट्टर भावुक हो उठे।
जब आपको यह फिल्म ऑफर हुई तो पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
करण जौहर ने मुझे बहुत समय बाद फोन किया। 'धड़क' के बाद यह मेरी दूसरी फिल्म है धर्मा प्रोडक्शन के साथ। उन्होंने बताया कि यह फिल्म नीरज घेवान बना रहे हैं। नीरज एक डायरेक्टर हैं जिन्हें मैं पिछले 10 साल से बहुत एडमायर करता हूं। 'मसान' देखने के बाद से ही मेरा सपना था कि कभी उनके साथ काम करूं। मैंने तुरंत हां कह दिया कि जो भी स्क्रिप्ट है मैं पढ़ना चाहता हूं। जब पढ़ी तो समझा कि यह फिल्म कितनी जरूरी और इंसानियत से भरी हुई है। यह मेरे करियर का सबसे कठिन किरदार था और सबसे खूबसूरत स्क्रिप्ट भी। इसने मुझे मेरी अपनी सुविधाओं और समाज की असमानताओं का एहसास कराया। इसलिए हां कहना मेरे लिए आसान था।
इस रोल के लिए आपने कैसी तैयारी की?
नीरज ने हमें डॉ. भीमराव आंबेडकर की जाति का उच्छेद (Annihilation of Caste) पढ़ने को दी। मैंने और विशाल जेठवा ने करीब ढाई–तीन महीने तक बोली और डायलॉग पर मेहनत की, जिसमें श्रीधर दूबे जी ने हमारी मदद की। फिर हम लोग बाराबंकी के गांवों में गए, वहां के लोगों के साथ रहे, उनकी बोली, आदतें और तकलीफें समझीं। इस अनुभव ने हमें बहुत गहराई दी, जो किसी किताब से नहीं मिल सकती थी।
शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
बहुत भावनात्मक रहा। हमने ज्यादातर फिल्म को क्रमवार (chronological order) शूट किया ताकि किरदार की यात्रा को सच में जी सकें। भोपाल और मध्य प्रदेश में दो महीने रहकर 90% फिल्म एक ही शेड्यूल में शूट की। क्लाइमेक्स सबसे आखिर में शूट हुआ, जिससे हम पूरी तरह उस सफर में डूब चुके थे। यह मेरे करियर की अब तक की सबसे खूबसूरत यात्रा रही।
इस रोल का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा क्या था?
सबसे मुश्किल यह था कि इस किरदार को सिर्फ अभिनय के रूप में नहीं, बल्कि सचमुच जीना था। नीरज चाहते थे कि हम सिर्फ परफॉर्म न करें, बल्कि इन किरदारों की सोच और तकलीफ को भीतर तक महसूस करें। किरदार का सामाजिक और इमोशनल बोझ इतना गहरा था कि कई बार शूटिंग के बाद भी मैं उससे बाहर नहीं निकल पाता था।

