डॉ प्रदीप मूनोट रायपुर में आयोजित फुट एंड एंकल कैडेवरी समिट में शामिल हुए

 डॉ प्रदीप मूनोट रायपुर में आयोजित फुट एंड एंकल कैडेवरी समिट में शामिल हुए

रायपुर, मुंबई के बांद्रा पश्चिम स्थित मुंबई नी फुट एंकल क्लिनिक के प्रमुख और देश के जाने-माने फुट एवं एंकल सर्जन डॉ. प्रदीप मूनोट आज रायपुर में आयोजित पहले फुट एंड एंकल कैडेवरी समिट में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। उनकी उपस्थिति से इस कार्यक्रम ने विशेषज्ञता और ज्ञान के लिहाज से एक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया।


मुंबई में अपनी विशेषज्ञता, अंतरराष्ट्रीय अनुभव और मरीज-केंद्रित दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध डॉ. मूनोट पिछले 10 वर्षों तक यूके में अभ्यास कर चुके हैं। घुटने, पैर और टखने की सर्जरी, लिगामेंट रिपेयर, मिनिमली इनवेसिव तकनीक और जटिल जॉइंट रिप्लेसमेंट में उनकी दक्षता उन्हें देश के शीर्ष विशेषज्ञों में शामिल करती है। उनके क्लिनिक में अत्याधुनिक तकनीक, सटीक डायग्नोसिस और मरीजों के लिए व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।

रायपुर में आयोजित इस विशेष समिट का आयोजन मुनोट फाउंडेशन द्वारा किया गया, जिसमें पहली बार शहर के विभिन्न निजी अस्पताल—रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल, बालाजी हॉस्पिटल आदि—ने मिलकर संयुक्त रूप से भाग लिया। कार्यक्रम में रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. संदीप दवे और बालाजी हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. देवेंद्र नायक भी मौजूद रहे।

कार्यक्रम के दौरान डॉ. मूनोट ने बताया कि लोग अक्सर फुट या एंकल की चोटों को हल्के में लेते हैं, जबकि ये चोटें अधिक कॉमन होने के कारण ध्यान न दिए जाने पर गंभीर रूप ले सकती हैं। उन्होंने सलाह दी कि मरीजों को चोट लगने पर फिजियोथेरेपी एक्सरसाइज़ के साथ विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि बेहतर और विश्व-स्तरीय उपचार रायपुर में ही उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वे हर महीने के बुधवार को रायपुर आकर मरीजों की कंसल्टेशन और उपचार करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय संस्था अमेरिकन फुट एंड एंकल सोसाइटी (AOFAS) में कार्यकारी सदस्य रह चुके डॉ. मूनोट का लक्ष्य है कि भारत, विशेषकर मुंबई और रायपुर जैसे बड़े शहरों में टखने और पैर की बीमारियों का इलाज अंतरराष्ट्रीय मानकों पर उपलब्ध कराया जाए।

मुनोट फाउंडेशन की इस पहल को विशेषज्ञों ने सराहते हुए कहा कि इस प्रकार के सम्मिट से चिकित्सा क्षेत्र में ज्ञान, कौशल और आधुनिक तकनीकों के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है और आम मरीजों को बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।

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