हरदा के श्री गंगेश्री मठ में संघ की एंट्री,वर्षों पुरानी गादी परंपरा खत्म
भोपाल।
हरदा जिले की टिमरनी तहसील के प्राचीन श्री गंगेश्री मठ में संघ की एंट्री हो गई है। इसके साथ ही मठ में महंत नियुक्त किए जाने की पुरानी परपंरा को भी खत्म कर दिया गया। मठ का प्रबंधन अब सात सदस्यीय न्यास संभालेगा।
इधर,मठ के निवर्तमान महंत विष्णु भारती ने,प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में दस्तक दी है। उनका आरोप है कि मठ प्रबंधन में बदलाव उन पर दबाव डालकर कराया गया। हालांकि मठ प्रबंधन में बदलाव की लिखित सिफारिश महंत भारती ने ही की। उन्होंने मठ का कामकाज अकेले संभाल पाने में असमर्थता जताते हुए पूर्व महंत विश्वेशर भारती,गोविंद गिरी,सुजीत शर्मा,विवेक भुस्कुटे,आनंद मजूमदार,रामवीर शर्मा,व तहसीलदार टिमरनी के नाम ट्रस्ट पंजी में जोड़ने की सिफारिश की। बिना तिथि व सील मुहर वाले इस पत्र को भी प्रशासन ने सहर्ष स्वीकार किया और महज एक पखवाड़े में मठ का नया संचालक मंडल तैयार हो गया। इसमें सिर्फ एकमात्र पैनल के चुनाव कराते हुए भुस्कुटे को अध्यक्ष,दोनों महंत को उपाध्यक्ष,सुजीत शर्मा सचिव नियुक्त कर दिए गए।
कोर्ट पहुंचे महंत ने कहा—दबाव में हुआ फैसला
भारती बताते हैं,मठ प्रबंधन में बदलाव को लेकर प्रशासनिक व पुलिस के स्तर से उन पर लंबे समय से दबाव बनाया जा रहा था। एक दिन उन्हें एसडीएम कार्यालय बुलाया गया। यहां,पहले से तैयार एक आवेदन पर सिर्फ दस्तखत करने को कहा गया। इस पत्र की भाषा से इसका आकलन किया जा सकता है। जिसमें तहसीलदार के आगे पदेन शब्द का उपयोग किया गया। जो सरकारी दस्तावेजी भाषा का शब्द है। पत्र में तारीख का उल्लेख भी नहीं है,न कोई सील,मुहर।जबकि वह ट्रस्ट से जुड़े अभिलेखों में सील,मुहर का उपयोग आमतौर पर करते रहे हैं।
भारती ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। मठ के एक अन्य पूर्व महंत विश्वेशर भारती ने भी न्यास के स्वरूप में बदलाव पर असहमति जताई।
टूट गई संतों की वर्षों पुरानी गादी परंपरा
टिमरनी तहसील के बिरजाखेड़ी गांव में स्थापित मठ का इतिहास काफी पुराना है। इसकी स्थापना दसनामी निरंग सन्यासी वर्ग ने की थी। मठ में गादी परंपरानुसार भारती गुरू अपने किसी योग्य शिष्य को महंत की गादी सौंपते रहे। बाद में महंत पद के लिए चयन प्रक्रिया शुरू हुई,लेकिन यह चयन मठ के शिष्यों के बीच से ही होता रहा,लेकिन मठ ट्रस्ट का नया संचालक मंडल बनने के बाद यह परंपरा टूट गई है।
प्रशासन की पहल पर हुए इस बदलाव से दसनामी निरंग सन्यासी वर्ग निराश बताया जाता है। वहीं एक श्रद्धालु आनंद जाट ने बताया कि मठ के प्रति उनके हृदय में गहरी धार्मिक आस्था है,लेकिन विचारधारा विशेष की एंट्री से वह आहत हैं।
मठ की 272 एकड़ कृषि भूमि,चल संपत्ति
गंगेश्वर मठ पर कब्जे को लेकर संघर्ष पहले भी हुएं मुकदमेबाजी भी हुई,लेकिन न्यायालय ने फैसला हमेशा गादी व श्ष्यि परंपरा के पक्ष में दिया। दरअसल,मठ प्रबंधन में नई आमद की बड़ी वजह इसकी 272 एकड़ भूमि व अन्य चल—अचल संपत्ति है।
छुट्टी के दिन मिला आवेदन और ताबड़तोड़ फैसला!
मठ प्रबंधन बदलने में प्रशासन कुछ अधिक ही आतुर रहा। बीते साल शनिवार 29 नवंबर को शासकीय अवकाश के दिन महंत विष्णु भारती से पत्र लिया जाता है। उनके द्वारा सुझाए गए लोगों के पास इसकी सूचना भी पहुंच जाती है और वे तत्काल अपनी सहमति दे देते हैं। तीसरे दिन यानी दो दिसंबर को एसडीएम टिमरनी का कोर्ट ट्रस्ट का विस्तार कर इसे एक सदस्यीय से 7 सदस्यीय करने का फैसला सुनाता है।
दस दिन बाद 12 दिसंबर को तत्कालीन कलेक्टर आदित्य सिंह की अध्यक्षता में ट्रस्ट के नए सदस्यों की बैठक होती है। राजस्व मामले की इस बैठक में एसपी हरदा अभिनव चौकसे की आश्चर्यजनक मौजूदगी भी रहती। बैठक में नए संचालक मंडल की भूमिका तय हो जाती है। 12 दिसंबर को ही ट्रस्ट के सदस्य व तहसीलदार ट्रस्ट प्रबंधन नई टीम को सौंपने का फैसला भी सुना देते हैं। इस आदेश में भी ढेरों अशुद्वियां हैं। कहीं गंगेश्वरी मठ तो कहीं श्री गंगेश्री मठ शब्द का उपयोग किया गया।
ट्रस्ट का विधान बदलने की तैयारी
तहसीलदार के आदेश में कहा गया कि नया बैंक खाता अध्यक्ष,सचिव व कोषाध्यक्ष के नाम से खुलेगा। यानी बैंक खाता के संचालन में मठ के महंत की कोई भूमिका नहीं होगी। इसी फैसले में मठ का नया विधान बनाने,जमीन को खोट नीलामी में देने,70 एकड़ जमीन पर गौशाला खोलने जैसे बिंदु भी शामिल हैं। इस संबंध में एसडीएम टिमरनी महेश कुमार बढ़ोले ने बताया कि उन्होंने समूची कार्यवाही नियमानुसार ही की है। यदि कोई पक्ष इस मामले में न्यायालय गया है तो सही,गलत वहां तय हो जाएगा।